आप आजाइए घर है ये आपका सोचने की ज़रुरत नहीं आपको |
जिस तरफ़ से भी आओ सभी दर खुले पूछने की ज़रुरत नहीं आपको ||
ख़ूब बनिए संवरियेगा अब शौक से रह न जाए कहीं पे भी कोई शिकन |
ग़ौर से मेरी आँखों में बस देखना आईने की ज़रुरत नहीं आपको ||
एक अदना सा ख़ादिम फ़क़त आपका और इसके सिवा तो मैं कुछ भी नहीं |
हर जगह हर घड़ी मैं मिलूंगा खड़ा ढूँढने की ज़रुरत नहीं आपको ||
इक दफ़्अ तो उसे याद कर लीजिये उसकी नेअमत का हर कोई हक़दार है |
वो बिना मांगे देता है सबको बहुत मांगने की ज़रुरत नहीं आपको ||
आप आ जायेंगे घर सँवर जाएगा ये तबीयत हमारी सुधर जायेगी |
कीजिएगा यक़ीं हम वफ़ादार हैं आंकने की ज़रुरत नहीं आपको ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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