Tuesday, 13 December 2011

आप आजाइए


 आप  आजाइए  घर  है  ये  आपका  सोचने   की  ज़रुरत    नहीं  आपको |
जिस तरफ़ से भी आओ सभी दर खुले पूछने  की  ज़रुरत   नहीं  आपको ||

ख़ूब बनिए  संवरियेगा   अब शौक से रह  न जाए कहीं पे भी  कोई शिकन |
ग़ौर   से   मेरी  आँखों  में  बस  देखना  आईने   की  ज़रुरत  नहीं   आपको ||

एक अदना सा ख़ादिम फ़क़त आपका और इसके सिवा तो मैं कुछ भी नहीं |
हर  जगह   हर   घड़ी   मैं  मिलूंगा   खड़ा   ढूँढने  की  ज़रुरत  नहीं  आपको ||                      

इक दफ़्अ तो उसे याद कर लीजिये उसकी नेअमत का हर कोई हक़दार  है |
वो  बिना   मांगे   देता  है  सबको  बहुत  मांगने  की  ज़रुरत  नहीं  आपको ||                      

आप  आ  जायेंगे  घर  सँवर   जाएगा  ये  तबीयत  हमारी  सुधर   जायेगी |
कीजिएगा   यक़ीं    हम   वफ़ादार   हैं   आंकने की  ज़रुरत  नहीं   आपको ||                       

डा० सुरेन्द्र  सैनी     

No comments:

Post a Comment