Thursday, 15 December 2011

तिशनगी ने


तिशनगी   ने   मचाया    ग़दर |
मै   भी   होने   लगी    बेअसर ||

कह   गया   बात   इसी     मुझे |
नींद   आयी   नहीं   रात     भर ||

बेख़बर    हो    गया   उससे    मैं |  
पर   उसे   मेरी   है   हर   ख़बर ||

और  किसका   यक़ीं  अब  करूँ |
एक    वो   ही   लगा     मातबर ||

आज महफ़िल में सब ख़ुश लगे |
मुझको  अच्छा  लगा  देख कर ||

ठीक   था  तो  हमारा  था क़ल्ब |
अब   तो  क़ाबिज़  हुए   डाक्टर ||

साँप   पहलू    में    है     आपके |
उसपे   रखियेगा   पैनी   नज़र ||

बोझ  जब   बन  गयी  ज़िंदगी |
क्यूँ  उठाये  फिरो  दर -ब -दर ||

रहजनों की है सब  पे  निग़ाह |
जिस तरह से भी कीजे सफ़र ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी 




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