तिशनगी ने मचाया ग़दर |
मै भी होने लगी बेअसर ||
कह गया बात इसी मुझे |
नींद आयी नहीं रात भर ||
बेख़बर हो गया उससे मैं |
पर उसे मेरी है हर ख़बर ||
और किसका यक़ीं अब करूँ |
एक वो ही लगा मातबर ||
आज महफ़िल में सब ख़ुश लगे |
मुझको अच्छा लगा देख कर ||
ठीक था तो हमारा था क़ल्ब |
अब तो क़ाबिज़ हुए डाक्टर ||
साँप पहलू में है आपके |
उसपे रखियेगा पैनी नज़र ||
बोझ जब बन गयी ज़िंदगी |
क्यूँ उठाये फिरो दर -ब -दर ||
रहजनों की है सब पे निग़ाह |
जिस तरह से भी कीजे सफ़र ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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